एक तेरी याद...

हर रात जुगनू निकल आते हैं घर से,
बता, ये अँधेरा मिटेगा कब शहर से,,

ये मुहब्बत मेरी दूर मुझसे हुई जैसे,
पतझड़ में पत्ते बिछड़ जाते हैं शज़र से,,

ज़िन्दगी बेहद हसीन है तुम्हारी तरह,
बस एक बार तुम देखो तो मेरी नज़र से,,

शब् से ही जो मुहब्बत हुयी है,
नफरत सी होने लगी सहर से,,

बेपरवाह जिंदगी है अपनी तो "उल्लास"
जी रहे इसे बस तेरी उल्फत के असर से ।

- अभिषेक बिल्लौरे "उल्लास"

तेरी याद

देख तुम्हे चांदनी भी शरमाती रही है,
बिन मौसम ये घटायें इतराती रही हैं,,

फक़त तसव्वुर में ही देखा अब तलक़,
ये इश्क़ कैसा, जो याद सताती रही है,,

बेहद मुश्किल है समझ पाना मुझे मेरा,
तेरी याद कभी हसाती कभी रुलाती रही है,,

जुदा जुदा सा हूँ ज़माने से मैं "उल्लास",
ये बात मेरी उल्फ़त, मुझे बताती रही है ।

-अभिषेक "उल्लास"

अब और नहीं


गहन सोंच में जीता जाऊ,
मैं प्याला हाला पीता जाऊ,,
बस अब और नहीं अब और नहीं....
मैं ओज को तेरे पाना चाहूँ,
मैं मौज में तेरी जीना चाहूँ,,
बस अब और नहीं अब और नहीं....
मैं संग तेरे ही चलना चाहूँ,
मैं तुझमे ही अब ढलना चाहूँ,,
बस अब और नहीं अब और नहीं....
मैं दुखी तुझे न करना चाहूँ,
मैं सब दुःख तेरे हरना चाहूँ,,
बस अब और नहीं अब और नहीं....
बस अब और नहीं अब और नहीं....

-अभिषेक बिल्लौरे "उल्लास"

माँ...


माँ,
रोया बहुत मैं
कल रात में
पास नहीं कोई
मेरे, जो
तू होती
पास मेरे और
भर लेती मुझे
आँचल में
अपने,
सच मिलता बहुत ही
सुख मुझे
पाकर तेरा
मार्मिक एहसास
और
खिल उठता
मन मेरा,
मन तेरा भी लगाता गोते
करुणा के सागर में
किन्तु मैं अभी भी
अकेला बहुत ही
अकेला हूँ,
बस कर रहा हूँ
प्रतीक्षा एक समय की
जब मैं
मिलूँगा तुझसे और
छूकर चरण तेरे
लग जाऊंगा गले से,
किन्तु,
मैं
अभी अकेला हूँ बस अकेला..

-अभिषेक बिल्लौरे "उल्लास"

मन मीत....

दीये मेरी कल्पनाओं के तुम ही जलाती हो,
क्यों तुम मेरी कल्पनाओं में आती हो।

प्रेम होता है क्या यूँ न पूछा करो हमसे,
तुम ही तो मुझे प्रेम का रसपान कराती हो।

सुशोभित श्रृंगार करके न आओ सामने,
तुम मुझ पर यूँ हावी हो जाती हो।

आभा मुख मंडल की तीव्र हो उठती है,
जब गुलाबी अधरों से तुम मुस्काती हो।

मुझे पागल कर जाता है तुम्हारा ये आकर्षण,
प्रिये जब जब तुम मेरे सपनों में आती हो।

- अभिषेक बिल्लौरे